मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

हे सीते

A picture of Sita Ram for hindi poem
हे सीते
हे सीते तुमने जीवन में क्या सुख भोगा 
राम का ही तो चढ़ा था तुम पर रंग चोखा ||
पर जब तुम धरती में समा गई थीं
तब तो श्रीराम के भी हाथ नहीं आ पाई थीं ||

तुमने जीवन भर यातनायें ही सहीं
तभी तो बनी तुम नारियों की पूज्य महीं |
पर महिषी नहीं बन पाई तुम श्रीराम की 
जबकि पत्नी थी तुम अपने प्रिय राम की ||

एक साधारण पुरूष की भाटी तुम पर शक किया 
मानते थे जबकि वे तुम्हें अपनी ही प्रिय प्रिया |
फिर क्यों किया उन्होंने तुम्हारा इतना तिरस्कार 
पर तब भी तुम्हें अपना राम ही था स्वीकार ||

यह भी सत्य है कि उन्होंने किसी दूसरी स्त्री को नहीं हेरा 
पर तुम्हारी ओर से तो बार-बार मुँह फेरा |
तुमसे अच्छी तो वह उर्मिला ही रही 
जो आराम व प्रतिस्ठापूर्वक घर में ही रहीं ||

तुमने तो सदा वनों की यातनायें ही झेली
सदा रही तुम दुखों की हमजोली 
तुम्हारा साथ तो श्रीराम भी नहीं दे पाये 
वो भी तो धोबी के कहने से बरगलाये ||

जो नहीं कर पाये तुम जैसी नारी का सम्मान 
उन्होंने तो बनना था जग में भागवान |
तुम्हारा पातिव्रत धर्म बना उनकी महिमा का आयाम 
धरती में समा कर किया तुमने महत्वपूर्ण काम ||

राम भी बन गये थे नारी के मोहताज 
सीते- सीते पुकारते रहे थे तुम्हारे सरवाज |
सभी ने देखा उसका विकल परिणाम 
नारी जाति आज भी याद करती है गर्व से तुम्हारा नाम ||

पर पूछती है क्यों सही तुमने यातनायें अविराम 
क्या इससे पूर्ण हुई थी तुम्हारे पतिव्रत की कामना |
तुम्हारी तो नहीं सुनी गई थी कभी भी कोई 
याचना पूर्ण प्रार्थना ||

२०१० में प्रकाशित 'नारी' कविता संग्रह में से

1 टिप्पणी :

  1. बहुत सुन्दर गहन मनन कराती प्रस्तुति ..
    रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें!

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